**सच्चा मित्र**
निबंध-संकेत (रूपरेखा)--प्रस्तावना, सच्चा मित्र ईश्वर का सबसे प्रिय वरदान है, सच्चे मित्र की पहचान आपत्ति के समय पर ही होती है, दुर्योधन और कर्ण की मित्रता, कृष्ण--सुदामा की मित्रता, उपसंहार।
प्रस्तावना---मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है समाज से वह कभी अलग नहीं रह सकता उसे प्रत्येक कार्य में लोगों के सहयोग की आवश्यकता होती है इन लोगों में कुछ ऐसे भी होने चाहिए जो इसके सच्चे शुभेच्छु हो। अतः समाज में रहकर मनुष्य अपने जीवन के क्षणों को उत्तम ढंग से व्यतीत करने के लिए मित्र बनाता है। मित्र शब्द का अर्थ आजकल बहुत हल्का और सामान्य है अचानक आपका परिचय हुआ और आपने उसको मित्र की संज्ञा दे दी सच्चा मित्र मिलना बहुत कठिन है मित्र का अर्थ उस साथी से लगाया जाता है जो गुणों को प्रकट करें अव गुणों को छिपा ले। सुख-दुख में साथ दें विश्वास और स्नेह के साथ उन्नति की कामना करें। परिवार के सदस्यों से हर बात नहीं की जा सकती यदि किसी से दिल खोल कर बातें की जा सकती है तो केवल मित्र से। मित्र के अभाव में मनुष्य कुछ खोया खोया सा रहता है क्योंकि वह अपने सुख दुख की बात किससे करें विपत्ति के समय किस से सहायता मांगे हँसी-मजा़क किससे करें, किसी समस्या का हल किस से पूछे तथा अपना समय किसके साथ बिताए?
सच्चा मित्र ईश्वर का सबसे प्रिय वरदान है--- सच्चे मित्र का मिलना सरल नहीं होता सच्चा मित्र ईश्वर का सबसे प्रिय वरदान है सच्चा मित्र वही है जो विश्वासपात्र तथा सदाचारी हो , जो आवश्यकता पड़ने पर काम आए वही सच्चा मित्र होता है जो अपने मित्र के दुख से दुखी हो अपने बड़े से बड़े दुख को धूल-कण के समान और मित्र के धूल कण के समान दुख को बढ़ा समझे मित्र को बुरे मार्ग से रोका अच्छे मार्ग पर चलाएं मित्र के गुणों को प्रकट करें और उसके अवगुणों को छिपाए। विपत्ति के समय सो गुणा स्नेह करें,लेन-देन मन में शंखा न रखे और अपनी शक्ति के अनुसार सदा हित ही करता रहे। मगर जो सामने कोमल वचन बोले और पीछे अहित करे और जो मन में कुटिलता रखे ऐसे मनुष्य को मित्र नहीं बनाना चाहिए।
सच्चे मित्र की पहचान आपत्ति के समय पर होती है-
सच्ची मित्रता मछली और पानी जैसी होनी चाहिए तालाब में जब तक जल रहा, मछलियाँ भी प्रसन्न रही। परंतु जब पानी पर विपत्ति आई और वह समाप्त होने लगा तो मछलियां भी उदास रहने लगी पानी के समाप्त होने पर मछलियों ने भी अपने प्राण त्याग दिए। जब मनुष्य पर विपत्ति आती है तो उसी समय सच्चे मित्र की पहचान भी होती है स्वार्थवश की गई मित्रता संकट के समय समाप्त हो जाती है। सच्चे मित्र की पहचान विपत्ति के समय पर होती है जो व्यक्ति के पास धन दौलत वैभव आदि होता है तो सभी लोगों से मित्रता करने लालयित रहते हैं परंतु जैसे ही उस पर गरीबी के बादल मंडराने लगते हैं मित्र किनारा कर लेते हैं।
दुर्योधन और कर्ण की मित्रता--- सच्ची मित्रता के अनेक उदाहरण मिलते हैं महाभारत में श्री कृष्ण ने कर्ण से प्रस्ताव किया कि यदि तुम दुर्योधन का साथ छोड़ दोगे तो पांडव तुम्हारा अभिषेक करेंगे तुम्हारी आज्ञा मानेंगे तुम महान सम्राट होने का गौरव प्राप्त करोगे तथा महाभारत का भीषण युद्ध रुक जाएगा यह जानते हुए भी कि वह कुंती का पुत्र है तथा पांडव उसके भाई हैं कर्ण ने दुर्योधन की मित्रता छोड़ना स्वीकार नहीं किया क्योंकि अपमान की घड़ी में दुर्योधन ने उसका हाथ थामा था सच्ची मित्रता का इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता हैं ?
कृष्ण--सुदामा की मित्रता--- कृष्ण-सुदामा की मित्रता का उदाहरण भी दिया जाता है। परंतु आज के युग में तो ऐसे मित्र की कल्पना मात्र की जा सकती है क्योंकि आजकल मित्रता किसी ना किसी स्वार्थ से प्रेरित होकर की जाती है स्वार्थ की पूर्ति होने पर मित्रता भी समाप्त हो जाती है स्वार्थ लागी करें सब अपराध प्रीति आज के अधिकांश मित्र सामने मीठा बोलते हैं और पीठ पीछे काम बिगड़ते हैं ऐसे मित्र विष भरे हुए उस घट के समान होते हैं जिसके मुंह पर दूध लगा दिया गया हो ऐसे मित्र को त्याग देने में ही भलाई है।
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