निबंध-संकेत(रूपरेखा)--
"जीवन में नव-जीवन भरने आता होली का त्यौहार"
प्रस्तावना ---त्योहार का व्युत्पत्तिकारक अर्थ है-तृप्ताहार अर्थात जो दिन खूब आनंद एवं खाने-पीने का हो वह त्यौहार का दिन है इसी प्रकार किसी विशेष तिथी महत्ता को याद दिलाने के लिए बड़ों का आयोजन किया जाता है भारत उत्सवों का देश है होली सबसे रंगीन हसीन और मस्त उत्सव है इस दिन भारत का प्रत्येक हिंदू भस्मीभूत होकर जय शिव शंकर भोले भंडारी का अवतार बना होता है होली वाले दिन लोग छोटे-बड़े, ऊंचे-नीचे, गरीब-अमीर, ग्रामीण-शहरी का भेद भुलाकर एक-दूसरे से गले मिलते हैं तथा परस्पर गुलाल लगाते हैं।
मनाने का समय -- होली फागुन के महीने में अंतिम 2 दिनों में मनाई जाती है। होली के पहले दिन किसी स्थान पर लकड़ियां डालकर उनका पूजन किया जाता है, सायंकाल के समय उन लकड़ियों में आग लगा दी जाती है इसके बाद अगले दिन लोग एक दूसरे पर रंग डालते हैं। इसे "फाग खेलना" कहा जाता है।
मनाने का ढंग --- होली वाले दिन लोग अपने हाथों में लाल-पीले रंगों का गुलाल लिए परस्पर प्रेमभाव से गले मिलते हैं एक दूसरे के मुंह पर रंग गुलाल, अबीर आदि मलते हैं। रंग मलकर उसे ऐसा बना देते हैं कि वह पहचाना भी ना जा सके। बहुत से लोग पानी की बाल्टीयाँ भर-भर कर एक दूसरे पर डालते हैं। बच्चे हुड़दंग मचाते हैं। गाने गाते हैं । इस प्रकार यह कार्यक्रम दोपहर तक चलता रहता है। इसके बाद लोग नहा धोकर अपने काम में लग जाते हैं। इस दिन किसी प्रकार का भेदभाव नहीं रखा जाता किसी अपरिचित को भी गुलाल मलकर अपने नजदीक लायाजा सकता है।
मनाने के कारण --- होली वसंत ऋतु का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है यह बसंत के यौवन के रूप में मनाई जाती है इन्हीं दिनों किसानों की फसल पक कर तैयार हो जाती है वे अपने परिश्रम के फल को सामने देखकर झूम उठते हैं प्राचीन काल में चने के पौधों को उखाड़कर उनसे होले बनाकर खाते थे। कच्चे चने से होले बनाने की प्रथा आज तक भी चली आ रही है।
होली का त्योहार धार्मिक त्योहार है इसे प्रहलाद के आग में जलने से बच जाने की खुशी में मनाया जाता है। प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप नास्तिक थे । वे स्वयं को भगवान कहते थे। उन्होंने अपने राज्य में यह मुनादी करवा रखी थी कि कोई भी ईश्वर की पूजा ना करें ।परंतु उन्हीं का बेटा प्रहलाद ईश्वर-भक्त बन गया।
पिता ने पुत्र को कई प्रकार से सताया अंत में उन्होंने अपनी बहन होलिका को बुलाया और उसे कहा कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए आग तो उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकेगी और प्रहलाद क ईश्वर उसे नहीं बचा सकेगा। लेकिन परिणाम इसका उल्टा निकला प्रहलाद तो आग में से सुरक्षित निकल गये और होलिका आग में जल मरी। सत्य की असत्य पर विजय हो गई। इसी दिन श्रीकृष्ण ने राक्षसी पूतना को मारा था
इस दिन ही नास्तिक कंस की हार हुई।
वृंदावन की होली ---वृंदावन की होली भारत में सबसे अधिक प्रसिद्ध है अनेक श्रद्धालु वृंदावन जाकर इस त्यौहार में भाग लेते हैं । इस दिन रास-लीलाएँ होती हैं।
गोप और गोपियाँ होली खेलते हैं। यह दृश्य मनोहरी व आनंददायक होते हैं।
महत्व --होली रंगों का त्योहार है यह हमें हमेशा प्रश्नन्न रखती है। इससे हमारे अंदर यह भावना विकसित होती है कि हम ह्रदय से विशाल बनें। जीवन में रंगारंग कार्यक्रम अपनाते हुए आदर्शों की स्थापना करें।
वैर-भाव को बुलाकर सभी को मित्रवत अपने गले लगाने का संदेश तो इस त्योहार के नाम में छिपा ही है।
हानियाँ -- वास्तव में होली का त्यौहार तो बड़ा ही ऊंचा दृष्टिकोण लेकर प्रचलित किया गया था आज कुछ लोगों ने इसका रूप बिगाड़ कर रख दिया है सुंदर एवं कच्चे रंगों के स्थान पर कुछ लोग काली स्याही व तवे की कालिमा का प्रयोग करते हैं कुछ मंद व्यक्ति एक-दूसरे पर गंदगी भी फेंकैते हैं। प्रेम और आनंद के त्यौहार को घृणा और दुश्मनी का त्यौहार बना दिया गया है होली के दिन कई बार अनुचित छेड़छाड़ ,मदिरापान,लड़कियोँ के साथ छेड़खानी आदि के कारण झगड़े पैदा हो जाते हैं। इसके कारण रंग में भंग पड़ जाता है।
उपसंहार -- होली के पवित्र अवसर पर हमें ईर्ष्या द्वेष कलह आदि बुराइयोँ को दूर भगाने का प्रयास करना चाहिए। समता और भाईचारे का प्रचार करना चाहिए।
छोटे बड़ों को गले मिलकर एकता का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। होली का त्योहार मनाना तभी सार्थक होगा जब हम इसके वास्तविक महत्व को समझ कर उसके अनुसार कार्य करेंगे।
अतः-
" वैर-भाव सब भूल खुशी से,होली का त्योहार मनाओ। खुशी मनाने का अवसर है मिलकर खुशी मनाओ"
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