भ्रष्टाचार
निबंध-संकेत (रूपरेखा)--- प्रस्तावना, पैसा फेंको काम करवाओ, रिश्वत को उपहार का नाम, भ्रष्टाचार देश के विकास में बाधा, श्रेष्ठ दिखाने का प्रयत्न,
भ्रष्टाचार के प्रति उत्तरदाई कौन, उपसंहार ।
प्रस्तावना ----भ्रष्ट+ आचार । भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है नीच आचरण विकासशील भारत में जनसंख्या वृद्धि की समस्या के बाद यदि कोई बड़ी समस्या है तो वह है भ्रष्टाचार ,भ्रष्टाचार दो शब्दों से मिलकर बना है भ्रष्ट+ आचरण यानी ऐसा आचरण जो स्वार्थपरता से शुरू होकर दूसरों के अहित पर समाप्त होता है। भ्रष्टाचारी व्यक्ति स्वार्थ में अंधा होकर या भूल जाता है कि वह अपने कुकृत्यों से ना जाने कितनों के दिल पर ठेस पहुंचा रहा है और ना जाने कितनों को ही उस शिर्डी में खड़ा कर रहा है जिसमें वह स्वयं हैं।
पैसा फेंको काम करवाओ---- आज चारों ओर एक ही आवाज सुनाई देती है "पैसा फेंके काम करवा ले"! आज के भारतीय मानव ने अपने उस आदर्श को भुला दिया है जिसके अनुसार धन उसके लिए अस्थाई और तुच्छ था भ्रष्टाचार आज हर जगह अपने पांव फैला चुका है चपरासी से लेकर बड़े पद पर बैठा हुआ अधिकारी और नेता सब इसके शिकार हैं परिणाम जो होना था आपके सामने है मेहनत करके पेट भरने वाले पिस रहे हैं तथा भ्रष्टाचारी समाज में प्रतिष्ठित एवं ऊंचे पदों पर बैठे हैं जब तक आप रिश्वत नहीं देंगे तब तक आपके छोटे से कार्य को भी पूरा होने में महीनों लग जाएंगे लेकिन रिश्वत का कमाल देखिए रिश्वत दी थी और बड़े से बड़ा कार्य भी पल भर में ही हो जाएगा।
रिश्वत को उपहार का नाम--- भ्रष्टाचार का ही परिणाम है कि निर्माणाधीन भवन मजदूरों की मौत के कारण बन जाते हैं पुल का उद्घाटन होने से पहले ही उस में दरार पड़ जाती है योग्य व्यक्ति बेरोजगारी की पंक्ति में खड़ा हुआ है और अयोग्य मजे से सरकार का कोष खाली कर रहा है। आज स्वार्थी लोग रिश्वत को उपहार का नाम देने लगे हैं किंतु ऐसा कोई उपहार जो स्वार्थ पूर्ति के लिए दिया जाए भ्रष्टाचार ही कहलाएगा।
भ्रष्टाचार देश के विकास में भी बाधा---- आजकल ट्रकों पर एक कहावत अक्सर लिखी हुई मिलती है। "100 में से 99 बेईमान, फिर भी मेरा भारत महान"!
क्या यह कहावत आज के भ्रष्टाचार युग में उचित नहीं है व्यंग में कही गई बात आज सत्य साबित हो रही है क्या यह कहावत उनकी नजरों से नहीं निकलती जो भ्रष्टाचारी हैं या फिर वह इसका मतलब नहीं समझते या मतलब समझ कर भी अनजान बन जाते हैं कारण जो भी हो उनके बुरे कर्म का नतीजा बेकसूर भारत को भुगतना पड़ रहा है भारत का नाम विश्व में कलंकित हो रहा है यह बुरा कर्म जनसामान्य से लेकर देश के विकास में भी बाधा उत्पन्न कर रहा है।
श्रेष्ठ दिखाने का प्रयत्न---- भ्रष्टाचार पर अपने का सर्वप्रथम कारण तो स्वार्थ ही है स्वार्थ के बाद दिखावा इसका प्रधान कारण है आजकल हर व्यक्ति अपने आप को श्रेष्ठ दिखाने का प्रयत्न करता है इसी प्रयत्न में वह यह भूल जाता है कि वह क्या कर रहा है, क्या नहीं। इसके अतिरिक्त आज के मानव ने अपनी आवश्यकताओं को इतना अधिक बढ़ा लिया है कि वह इनकी पूर्ति के लिए औरों का शोषण करता है भ्रष्टाचार के लिए वे लोग भी उत्तरदाई हैं जिनको भगवान ने छप्पर फाड़ कर दिया है लेकिन उनके पास संतोष नहीं है।
भ्रष्टाचार के प्रति उत्तरदाई कौन--- भ्रष्टाचार पनपने के पीछे दोषी कौन है? क्या रिश्वत लेने वाला, देनेवाला ,या रिश्वत देने के लिए प्रोत्साहित करने वाला? इसके लिए सभी दोषी हैं यदि देने वाला देगा नहीं तो लेने वाला कहां से लेगा यदि भ्रष्टाचार के विरुद्ध हम आवाज नहीं उठा सकते तो यह भी हमारी ही कमजोरी है यदि गहराई से सोचा जाए तो किसी ना किसी रूप में हम अपने आप को भी इसके उत्तरदाई पाएंगे।
उपसंहार ---- यदि हम भ्रष्टाचार को समाप्त करना चाहते हैं तो हमें पहले स्वयं को समझना पड़ेगा उसके बाद एक ऐसा जन आंदोलन चलाना पड़ेगा जो भ्रष्टाचारियों का समूल नाश कर दे ।भ्रष्टाचार की समाप्ति से ही देश ,मानवता और आदर्शों की रक्षा हो सकती है। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब भ्रष्ट लोग यहां तक गिर जाएंगे कि वे देश को भी बेच कर खा सकते हैं संभलो अभी भी समय है अन्यथा पछताने के सिवा कुछ भी हाथ नहीं लगेगा।
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